हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाह हाशमी अलिया ने तालिब ए इल्म के लिए आयोजित एक नैतिक कक्षा में कुरान और अहले-बैत (अ.स.) के प्रकाश में अत्याचार के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि इंसान कभी सीधे तौर पर अपने आप पर अत्याचार करता है, और कभी दूसरों के अधिकारों को रौंदकर। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपनी नैतिक कमियों को सुधारता नहीं है, वह स्वयं पर अत्याचार कर रहा है।
उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार की शिक्षा, मार्गदर्शन और अधिकारों की पूर्ति में कोताही करे तो यह भी अत्याचार है। पति का पत्नी पर, माता-पिता का संतान पर या किसी भी व्यक्ति का दूसरे के अधिकारों का उल्लंघन करना, वास्तव में स्वयं उसी के विरुद्ध अत्याचार है।
आयतुल्लाह हाशमी अलिया ने आगे कहा कि रिश्तेदारों के सुधार और सहायता में लापरवाही भी अत्याचार है। यदि किसी को नैतिक या आर्थिक सहायता की आवश्यकता हो और हम सहायता न करें, तो यह भी अत्याचार की श्रेणी में आता है।
उन्होंने सूरए तहरीम की आयत
«قُوا أَنْفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًا»
अपने आपको और अपने परिवार को आग से बचाओ) का हवाला देते हुए कहा कि अल्लाह ने इंसान को परिवार के अधिकारों की पूर्ति का पाबंद बनाया है, अन्यथा वह आखिरत में यातना का हकदार ठहरेगा।
हौज़ा के शिक्षक ने चेतावनी दी कि जो व्यक्ति समाज या देश की जनता के अधिकारों को पूरा नहीं करता, चाहे वह शासक, न्यायाधीश या कोई अधिकारी हो, वह भी अत्याचारी है। रिश्वत लेना, अन्याय करना या मजलूमों की फरियाद न सुनना बड़ा अत्याचार है, खासकर उन लोगों के साथ जिनका अल्लाह के सिवा कोई सहायक नहीं है।
आयतुल्लाह हाशमी अलीया ने अंत में कहा कि हर अत्याचार वास्तव में दोहरा अत्याचार है एक दूसरों पर, और दूसरा अपनी आत्मा पर। यदि इंसान ईमान, परहेजगारी और न्याय को थामे रखे तो वह कभी अत्याचार नहीं करेगा। हमें चाहिए कि मजलूम बनें, जालिम नहीं, क्योंकि अल्लाह मजलूम का बदला अवश्य लेता है, चाहे वह काफिर ही क्यों न हो।
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